एक छोटेसे शहर की कहानी है। वहां सिर्फ एक चिड़ियाघर था!
और अधिक पंछी इकट्ठा करने के लिए उस चिड़ियाघर का मालिक भीकू अक्सर बाहर दाना पानी रखता था। कुछ पंछी दाना चुगकर चले जाते, तो कुछ वहीं बस जाते। इसी तरह यहां तरह तरह के पंछी बस गए और पंछियों की संख्या बहुत बढ़ गई! भीकू खुश था!
कुछ सालों बाद उस शहर में एक और चिड़ियाघर खुला। वहां का मालिक अमू भी वही करता जो भीकू करता आ रहा था! लेकिन उस चिड़ियाघर की तरह यहां की संख्या उतनी तेज़ी से बढ़ नहीं रही थी।
तो एक दिन अमू भीकू के पास गया, और २-३ गुना दाम पर भीकू के सारे अच्छे पंछी खरीद कर ले आया! इस तरह, अमू के चिड़ियाघर में लोगों की भीड़ बढ़ने लगी और भीकू के चिड़ियाघर में घटने लगी। साथ ही, अमू की आमदनी भी तेज़ी से बढ़ने लगी!
मासूम लोगों को ये बातें कहां मालूम पड़ती है? तो अमू के चिड़ियाघर के कुछ प्रशंसकों को लगा, की इतनी तेज़ी से बदलाव लाना किसी भी आम मनुष्य की बुद्धि नहीं सोच सकती, ज़रूर अमू ने कोई खास नीति अपनाई होगी!
आज पूरे शहर में अमू को “चिड़ियाघरों के चाणक्य” के नाम से जाना जाता है!
Harsh reality of society!!!!