पर्दे पर जब शाहरुख खान राज के और हृतिक अल्ताफ़ के किरदार में आते हैं,
कभी सोचा है कि वो हमें इतना क्यों भाते हैं?
शायद इसलिए कि वें उन ३ घंटों में सिर्फ अपना किरदार निभाते हैं,
और फिर अपनी निजी जिंदगी में लौट जाते हैं।
“हम सब रंगमंच की कठपुतली हैं” ऐसा हम सभी ने सुना होगा शायद!
तो आइए उस बात पर ज़रा गौर फरमाते हैं…
और अपने ईश्वर-अल्लाह-वाहेगुरु ने दिए हुए किरदारों में रंग जाते हैं।
पहनावे की कोई बात नहीं इसमें दोस्त, सब अपना मनपसंद पहनकर आते हैं,
और एक इंसान जब सामने आए तो बस उससे इंसानियत निभाते हैं!
फिर घर जाकर चाहे मै जाप करूं हर हर महादेव, कहूं Praise the Lord, या करू अल्लाह की इबादत,
ये है मेरी अपनी साधना, मेरी अपनी आदत!
ज़िंदा हो तब तक तो डंडों, बारूद और तलवारों से ताकत दिखाओगे,
लेकिन जब समय आएगा, तब या तो मिट्टी में समाओगे, या फिर धुआं हो जाओगे!
घर बैठकर सोचने के लिए काफी समय मिल रहा है, आगे क्या पता कब मिले,
अगर एक दूसरे को ज़ख्म दिए होंगे कभी तो आओ, अभी सी लें।
साफ मन से सोचोगे तो मै धर्म को छोड़ने की नहीं,
अपने कर्मों को निभाने की कर रहा हूं बात।
नहीं तो ये महामारी तो चली जाएगी एक दिन,
और मारे जाओगे एक दूसरे के ही हाथ!
मारे जाओगे एक दूसरे के ही हाथ!
Good one AbhinÀv and so true. Humanity would be saved if we stop judging each other and seeing one another as our own.
Thats true Jessica! Thank you! 🙂
Well written thoughts. I particularly like the 1st and last paragraph! 😊
Thank you Priyanka! 🙂
very well written abhinav..i hope some day society changes its perspective regardinh each other..hope everyone starts seeing each other as normal human being instead of the religion u belong to
So true, high time! Thanks a lot! 🙂