सुनो दोस्तों एक बात कहनी थी, उसके बारे में जो एक दिन आया,
और जिसने सारे किस्से-कहानियों के परे एक बात सिखाई है,
के डरना नहीं है..
लेकिन घर से बाहर निकलकर उसका सामना करना नहीं है।
हर दिन मानो एक नया तूफान था।
पढ़ाई-लिखाई वालों के इम्तहान,
तो दफ्तर में क्या होगा इसका ना हमें अनुमान था।
हमेशा हमसे हर कोई यही कहता आया है, के डरो नहीं, लड़ो।
भागो नहीं, सामना करो।
फिर एक दिन आया वह जिसने इन सारी बातों के परे एक बात सिखाई है,
के डरना नहीं है..
लेकिन घर से बाहर निकलकर उसका सामना करना नहीं है।
किसिका गुलाम बने रहना भी आसान नहीं था।
गांधी बोले डरो नहीं, तमाचा खाओ, लेकिन मारो नहीं;
भगत बोले सामने आओ और तमाचे का जवाब दो;
तो सुभाष बोले कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा!
लेकिन आज २०२० में आया वह जिसने इन सारी बातों के परे एक बात सिखाई है,
के डरना नहीं है..
लेकिन घर से बाहर निकलकर उसका सामना करना नहीं है।
जहां राजपूतों ने खिलजी के खिलाफ भी उसूल ना छोड़ा,
मराठों ने कभी औरंगज़ेब के आगे अपना हौसला ना तोड़ा,
उसी धरती पर इस सदी में आया वह जिसने इन सारी बातों के परे एक बात सिखाई है,
के डरना नहीं है..
लेकिन घर से बाहर निकलकर उसका सामना करना नहीं है।
इनकी बहादुरी और सीख को नमन करते आए हो ना!
इनकी कहानियां पर्दे पर देख आखों में आंसू और हाथों से तालियां बजाते आए हो ना!
तो सुनो, बाहर भी ऐसे ही सैकड़ों सूरमा वर्दी पहने तैनात हैं।
कुछ की वर्दी खाकी और कुछ की सफेद है।
सफेद वर्दी बीमार शरीर का इलाज करने अपने शस्त्र इस्तेमाल कर रही है,
और खाकी वर्दी कुछ कम दिमाग वालों को ठीक करने के लिए अपने!
निवेदन है आपसे, कि इनकी मुश्किलों को और इस बीमारी को और आगे मत बढ़ाइए,
काफी समय गवां दिया है, अब तो समझ जाइए।
मान लिया के डरना नहीं है..
लेकिन घर से बाहर निकलकर उसका सामना भी करना नहीं है।
घर से बाहर निकलकर उसका सामना भी करना नहीं है।
Amazing !!! 👌👏🏻
Thank you Nidhi! 🙂